नौ साल तक प्लंबर के तौर पर काम करके अपना जीवन यापन करने वाले ओड़िशा के नयागढ़ के 23 साल के एक युवक ने राज्य की रणजी ट्राफी टीम में जगह बनाई है। दाएं हाथ के तेज गेंदबाज प्रशांत राणा का यहां तक का सफर किसी चमत्कार से कम नहीं है। वह देश के उन कुछ क्रिकेटरों में से एक हैं, जिन्होंने जूनियर क्रिकेट में राज्य का प्रतिनिधित्व किए बिना रणजी टीम में जगह बनाई है।  

प्रशांत राणा ने अहमदाबाद से कहा कि वे अपने सपने को पूरा करने के लिए कटक आए थे क्योंकि वे हर हाल में क्रिकेट खेलना चाहते थे। दसवीं कक्षा पास करने के बाद राणा ने कटक के राजाबागीचा के सिटी कालेज में प्लस II में ह्यूमैनिटीज की पढ़ाई करने का फैसला किया और और यूनियन स्पोर्टिंग क्रिकेट क्लब से भी जुड़े। उनका परिवार उनकी मदद के लिए हर महीने 2000 रुपये भेजता था, लेकिन चार महीने बाद उनके पिता को टीबी से ग्रस्त होने के बारे में पता चला और पैसा आना बंद हो गया। वह गांव के पुजारी थे। प्रशांत के भाई सब्जी बेचकर अपनी आजीविका चलाते थे। ऐसे में राणा के परिवार वाले उन्हें वापस बुलाने लगे थे। वे चाहते थे कि क्रिकेट के बजाय सेना, बीएसएफ या सीआरपीएफ की नौकरियों के लिए कोशिश करें। लेकिन राणा के मन में कुछ और योजनाएं थीं उन्होंने राजधानी में नौकरी की तलाश शुरू कर दी। ऐसे में उऩ्होंने एक आदमी से संपर्क किया और प्लंबिंग के काम में लग गए। राणा इस काम को करने के लिए साइकिल पर हर दिन लगभग 40 किमी की यात्रा करता थे। उन्हें प्रतिदिन इसके लिए 250 रुपये मिलते थे, लेकिन काम ने उनका पूरा दिन लद जाता था और उनके पास अभ्यास के लिए बहुत कम ऊर्जा बचती थी। तभी उऩ्होंने ठेकेदार से संपर्क और उसे प्रतिदिन केवल 100 रुपये देने लेकिन दोपहर 1 बजे तक जाने देने के लिए कहा, ताकि वह अभ्यास कर सकें।