भारत में देवी के मंदिर हर जगह मौजूद है। जिसमें वैष्णो देवी मंदिर, मनसा देवी, अम्बाजी माता मंदिर आदि शामिल है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ पर माता अपने भक्तों को ज्वाला रूप में दर्शन देती है। आप में से कई लोगों ने इस मंदिर के बारे में सुना होगा और हो सकता है कई लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने भी गए होंगे। लेकिन कई लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें इस मंदिर के बारें में जानकारी नही है। आज हम आपको इस लेख में बताएंगे की कैसे यहाँ पर माँ स्वयं ज्वाला रूप में प्रकट हुई थी और किसने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में हैं, इसलिए इन्हें कांगड़ा देवी भी कहते हैं। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं में उल्लेखनीय है कि एक बार माता सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। उसमें उन्होंने माता सती को आमंत्रित नहीं किया था। लेकिन माता सती बिना निमंत्रण के वहाँ पहुँच गई उन्होंने देखा कि यज्ञ में सबका भाग था लेकिन भगवान शिव का नहीं, यही बात उन्होंने अपने पिता से कही उनके पिता ने भगवान शिव के बारे में अपमानजनक शब्द बोले जिन्हें सुनकर माता सती को गुस्सा आ गया और वह यज्ञ की अग्नि में कूद गयी। जब यह खबर भगवान शंकर तक पहुंची तो वह यज्ञ स्थल पर पहुंचे और उन्होंने देवी सती के जलते हुए शरीर को गोद में उठा लिया और सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे।

भगवान शंकर और माता सती के इस अनोखे प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई है, हवा रुक गयी, पानी भी ठहर गया और साथ ही सभी देवी देवताओं की सांसे भी रुक गयी जिसके कारण पृथ्वी के लोग त्राहिमाम त्राहिमाम चिल्लाने लगे थे। संकट की स्थिति देख भगवान विष्णु आगे आए और उन्होंने अपने सुदर्शन से माता सती के शरीर के अंगों को अलग अलग काट कर गिरा दिया था। उनके अंग पृथ्वी पर 51 अलग अलग स्थानों पर गिरे थे। जिन्हें आज 51 शक्तिपीठों के नाम से जाना जाता है। कांगड़ा स्थित ज्वाला देवी का मंदिर वह स्थान है जहाँ पर माता सती की जिह्वा का भाग गिरा था।

कहते हैं कि राजा भूमिचंद्र ने इस क्षेत्र में देवी के अंग को ढूंढने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने एक छोटा सा सती माता का मंदिर बनवाकर वहीं पर देवी अराधना आरंभ कर दी तब 1 दिन एक ग्वाले ने उन्हें आकर सूचना दी कि पर्वत पर उसने ज्वाला निकलते हुए देखी है तब राजा ने उस स्थानपर जाकर देखा और दर्शन के बाद माँ ज्वाला का देवालय बनवाकर शाकल द्वीप के दो ब्राह्मण श्रीधर और कमलापति को मंदिर की सारी जिम्मेदारी सौंपकर माँ के चरणों के दास हो गये।

इस मंदिर में देवी माँ के दर्शन नौ ज्योति के रूप में होता है। जिनके नाम महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजनी है। इस मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को 24 सीढ़ियां चढ़नी होती है। जिसके बाद उन्हें गणेश मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन होते हैं फिर भक्त माता के ज्योति स्वरूप में दर्शन कर उन्मत्त भैरव के दर्शन करने के लिए आगे बढ़ते हैं। यहां पर भक्ति ज्योति देवी के साथ सदाबाहर मौलश्री वृक्ष, राधाकृष्ण मंदिर, शिवशक्ति मंदिर, वीरकुंड, लाल शिवाला, कालभैरव मंदिर, बिलकेश्वर मंदिर, गोरख डिब्बी, तारादेवी, अष्टभुजा मंदिर, सिद्ध नागार्जुन, दसविद्या मंदिर और अकबर द्वारा चढ़ाए गए क्षेत्र को भी देख पाते हैं।

देवी का यह मंदिर भक्तों के बीच काफी मान्यता रखता है। यहाँ पर पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ पर दिन में पांच बार देवी की विशेष आरती होती है। जिसमें प्रातः काल की मंगला आरती और रात्रि की शयन आरती बहुत ही दिव्य और आकर्षक होती है। इस आरती में सम्मिलित होने के लिए भक्त काफी इंतजार भी करते हैं।