सरकारी अस्पतालों के डाक्टर मरीजों को नहीं लिखते हैं जेनरिक दवा। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने शुरू से ही जेनरिक दवा लिखने का निर्देश दिया है। फिर भी सरकारी डाक्टर जेनरिक दवाओं पर विश्वास नहीं जता पा रहे हैं और मरीजों को सिर्फ ब्रांडेड दवा ही लिखते हैं, जिससे जो मरीज पांच या 10 रुपये की पर्ची कटवाकर डाक्टर से दिखाने पहुंचते हैं।

ब्रांडेड दवा खरीदने में मरीजों की हालत पस्‍त

उन्हें एक बार में कम से कम 1000 रुपये का ब्रांडेड दवा लेनी पड़ रही है। यह स्थिति सदर अस्पताल से लेकर रिम्स तक की है। प्रखंडों के सीएचसी और पीएचसी में भी ब्रांडेड दवा ही लिखी जा रही है।

हालांकि, इन ग्रामीण अस्पतालों में सरकार द्वारा ही निश्शुल्क दवा उपलब्ध करायी गई है। फिर भी कुछ दवाओं के लिए इन्हें ब्रांडेड दवा खरीदनी पड़ती है।

कई बार आदेश जारी हुआ लेकिन कुछ हुआ नहीं

मरीजों को ब्रांडेड दवा ही लिखने को लेकर कई बार बड़े अधिकारियों द्वारा आदेश जारी किया गया है। लेकिन सरकारी डाक्टर उन्हीं ब्रांडेड दवा को लिखते हैं जिस कंपनी के एमआर उनके संपर्क में रहते हैं।

ऐसी स्थिति को देखने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जबकि इन आदेशों को निकालने वाले खुद सिविल सर्जन और रिम्स निदेशक हैं। जो हमेशा एनएमसी और स्वास्थ्य विभाग का हवाला देते हुए डाक्टरों को तत्काल प्रभाव से जेनरिक दवा ही लिखने का आदेश देते हैं।

रिम्स के कुछ डाक्टर भी नहीं लिखते जेनरिक दवा 

रिम्स मेडिसिन विभाग के कुछ डाक्टर मरीजों को जेनरिक दवा लिखते हैं। डा. बी कुमार बताते हैं कि वो हमेशा मरीजों को सिर्फ जेनरिक दवा ही लिखते हैं। साथ ही मरीजों को यह भी बताया जाता है कि वे पीएम जन औषधि केंद्र जाकर ही दवा खरीदें।

उन्होंने बताया कि पीएम जनऔषधि की दवा दूसरे जेनरिक दवाओं से बेहतर है। इसी दवा पर विश्वास किया जा सकता है। साथ ही इन दवाओं की कीमत इतनी कम होती है कि कोई सोच भी नहीं सकता। ब्रांडेड दवाओं की तुलना में इन दवाओं की कीमत 80 प्रतिशत तक कम होती है।

डाक्टरों को कई बार जेनरिक दवा लिखने का निर्देश दिया जा चुका है। लेकिन वे जेनरिक दवा नहीं लिख रहे हैं। इसे लेकर फिर से सभी डाक्टरों के साथ बैठक कर उन्हें दिशा-निर्देश दिया जाएगा ताकि मरीजों को सस्ते दर पर गुणवक्तता पूर्ण दवा मिल सके - डा. प्रभात कुमार, सिविल सर्जन, रांची।