मिशन 2024 को लेकर झारखंड की राजनीतिक बिसात बिछ रही है। ऐसे में संभव है कि भाजपा में कट्टर हिंदुत्व के पैरोकार पर्यावरण वन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे और जरमुंडी से कांग्रेसी विधायक व झारखंड के कृषि मंत्री की शनिवार को दुमका परिसदन के एक बंद कमरे में तकरीबन डेढ़ घंटे की मुलाकात हुई।दोनों नेताओं के बीच यह मुलाकात महज औपचारिक व शिष्टाचार से ही जुड़ा हो, लेकिन राजनीति की समझ रखने वाले इसे कई नजरिए से देख रहे हैं। भविष्य की राजनीति की कड़ी से जोड़ रहे हैं।

अश्विनी चौबे से मिलने पहुंचे मंत्री बादल पत्रलेख
दरअसल, केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे दुमका के गोपीकांदर और काठीकुंड प्रखंड के चार पंचायतों में विकसित भारत संकल्प यात्रा अभियान में बतौर प्रभारी शिरकत करने आए थे। उनके ठहरने का इंतजाम दुमका परिसदन में किया गया था। शनिवार को सुबह-सुबह ही सूबे के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख उनसे मिलने पहुंच गए। बादल बिना किसी तामझाम, लाव-लश्वकर व कार्यकर्ताओं की भीड़ के यहां पहुंचे थे और सीधे अश्विनी चौबे के कमरे में चले गए और फिर डेढ़ घंटे तक बंद कमरे के बीच दोनों के बीच गुफ्तगू होती रही। इस वजह से केंद्रीय राज्य मंत्री के तय तमाम कार्यक्रमों का समय भी आगे बढ़ता चला गया और नतीजा यह कि वह गोपीकांदर और काठीकुंड के एक-एक पंचायत में भी आमजनों से सीधा संवाद कर पाए।

वहीं, परिसदन में उनसे मिलने आए भाजपा के नेता व कार्यकर्ताओं को भी उनसे मिलने के लिए काफी देर तक इन्तजार करना पड़ा। खास कर जरमुंडी विधानसभा के भाजपा नेता देवेंद्र कुंवर भी परिसदन के हाल में कार्यकर्ताओं के बीच बैठकर इन्तजार करते रहे।

दोनों मंत्रियों के बीच मुलाकात पर सियासी चर्चा तेज
इधर, दोनों मंत्रियों के बीच लंबी मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा तेज है। एक चर्चा तो यह कि मंत्री बादल राज्य और केंद्र सरकारों के बीच के संबंधों को पाटने की गरज से एक दूत की तरह मुलाकात करने पहुंचे थे। वहीं, दूसरी ओर यह भी कयास लगाया जा रहा है कि मिशन 2024 के निकट आते ही अब राजनीतिक गोटियों को सेट करने की कवायद तेज हो गई है। इसे ध्यान में रखते हुए दोनों नेताओं के बीच बातचीत होने की संभावना है। बहरहाल, इस मुलाकात पर न तो भाजपा का कोई नेता मुंह खोलने को तैयार है और नहीं कांग्रेस का। हालांकि राजनीति की पक रही इस खिचड़ी का जायका क्या होगा यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है कि डेढ़ घंटे की इस लंबी मुलाकात को शिष्टाचार मात्र नहीं कहा जा सकता है।