गुरुवार को देवउठनी ग्यारस पर घर-घर हुई पूजा अर्चना
भोपाल । उठो देव सांवले, बैर भांजी आंवले। क्वारन के ब्याह होए, ब्याहन के गौना’ यह लोक गीत गुरुवार को देवउठनी ग्यारस पर घर-घर सुनने को मिला। सुबह गन्ने की कीमत 50 रुपए में एक बेचा जा रहा था, जो शाम होते होते 20 रुपए प्रति गन्ना बेचा गया। शहर के जगह-जगह गन्ने की ढेर लगे हुए थे। सुबह से ही घरों के आंगन व द्वार पर सुंदर रंगोली बनाने का सिलसिला शुरू हो गया था। गौधूलि बेला में घर-घर गन्ने का मंडप सजाया गया। उठो देव सांवले, बैर भांजी आंवले... के पूजन के साथ गन्नों का मंडप बनाकर शलिगराम व तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार कराया गया। भगवान को नई फसल की सब्जियां, घरेलू पकवानों के साथ अमरूद, सिंघाड़े, बेर, मूली अर्पित किए गए तुलसी का पौधा व शलिगराम की प्रतिमा रखकर पूजन कर भगवान लक्ष्मीनारायण को क्षीर सागर से उठाने की पूजा अर्चना की गई। इसके बाद रंगारंग अतिशबाजी का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। ग्यारस से विवाहों के शुभ मुहूर्त शुरू होने से सैकड़ों विवाह हुए।
करुणाधाम आश्रम में निकली बारात, हुई आतिशबाजी
नेहरू नगर स्थित करुणाधाम आश्रम में दो दिवसीय विवाह उत्सव का आयोजन किया गया। इस दौरान बन्ना बन्नी गीत सहित अन्य रस्में हुर्इं। आश्रम को हरे रंग से सजाया गया था। इसी प्रकार नेहरू नगर चौराहे से बारात निकाली गई जो आश्रम पहुंची। इसके बाद यहां विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ विवाह उत्सव हुआ। इस कार्यक्रम में महिलाएं हरे रंग और पुरुष नीले रंग के परिधानों में शामिल हुए। भव्य आतिशबाजी की गई।
16 गन्ने का मंडप बनाकर हुई पूजा-आराधना
लखेरापुरा स्थित श्रीजी मंदिर में एकादशी पर प्रभु श्री नाथ जी को प्रात:काल चंदन, आंवला, इत्र से स्नान कराकर सुनहरी जरी के बागा एवं सोने मोती के जड़ाऊ आभूषण के साथ सिर पर पांच जोड़ की मोर चंद्रिका और चोटी से शृंगार किया गया। प्रभु को खोडिया, पीली मिट्टी और गुलाल से निर्मित अष्ट कमल के चौक में 16 गन्ने की मंडप बनाकर प्रभु को दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके विराजमान किया। क्योंकि ऐसा कहा जाता है दक्षिण दिशा में नरक का वास होता है तो प्रभु नरक के उद्धार के लिए दक्षिण दिशा मुख करके उठे थे। फिर शलिगराम जी का पंचामृत स्नान हुआ। फिर आरती कर परिक्रमा की गई। श्रीनाथ जी को गुड़ से निर्मित सामग्री का भोग लगाया एवं गन्ने का रस, बैंगन, सिंघाड़े, चने की भाजी से निर्मित सामग्री का भोग लगाया गया। फिर उसके बाद तुलसी जी का विशेष शृंगार कर पूजन किया गया।
घरों में पांच, सात, 11 गन्नों का मंडप बना कर की पूजा
श्रद्धालुओं ने तुलसी और शलिगराम के विवाह के लिए पूजा सामग्री सहित गन्ने आदि की खरीदारी में व्यस्त रहे। सुबह से शाम तक बाजारों में भीड़ लगी रही। शाम को पूजा की तैयारी शुरू हुई। घर-द्वार को दीपों की रोशनी से रोशन किया गया। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर पूजा के लिए श्रद्धालुओं ने विशेष रूप से पांच,सात,11 गन्नों का मंडप बनाया। इसके बाद विष्णु को धूप, दीप, फूल, गंधक, चंदन, फल और अर्घ्य देकर दीपदान कर अन्नकूट का भोग लगाया। वहीं जो श्रद्धालु उपवास थे, उन्होंने हवन-पूजन किया। सुक्त का पाठ भागवत के दसवें स्कंद का पाठ भी कुछ श्रद्धालुओं ने किया। गन्ने का मंडप बनाकर तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया। पूजा समाप्त होने के बाद लोगों ने आतिशबाजी की गई।