सावन के प्रत्येक मंगलवार के दिन मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है. इस व्रत में मां गौरी यानी पार्वती जी की पूजा की जाती है. यह व्रत विवाह के सुख एवं संतान के सुख हेतु उत्तम फलों को देने वाला होता है.

अपने नाम अनुरुप ही यह व्रत मंगल सुख प्रदान करता है. जिसके कारण इस व्रत को मंगला गौरी व्रत कहा जाता है.

मंगला गौरी व्रत को मोरकट व्रत के नाम से भी जाना जाता है. सावन माह में पड़ने वाले सभी मंगलवारों को मंगला गौरी व्रत करने का विधान है. पुराणों के अनुसार श्रावण मास भगवान शिव और माता पार्वती को अत्यंत प्रिय है, इसीलिए श्रावण मास के सोमवार को भगवान शिव और मंगलवार को देवी गौरी एवं महदेव की पूजा अत्यंत शुभ और मंगलकारी बताई गई है.

सावन का अंतिम मंगला गौरी कब है?
इस बार सावन की समाप्ति के साथ ही सावन का अंतिम मंगला गौरी व्रत 29 अगस्त के दिन रखा जाएगा. इस दिन पर सोम प्रदोष व्रत का पारण होगा तथा साथ ही ऋगवेदिय उपाक्रम भी इस समय पर किए जा सकेंगे. मंगला गौरी का व्रत करने से हर संकट का निवारण होता है. विधि विधान के साथ मंगलागौरी की पूजा द्वारा भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

माता पार्वती की पूजा, से परिवार पर आने वाला हर संकट दूर हो जाता है. सावन के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत करने का विधान है. इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही जीवनसाथी की उम्र लंबी होती है. आइए जानते हैं क्या है मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि और कैसे करें देवी माता का पूजन

मंगला गौरी व्रत पूजा विधि
इस दिन व्रत धारक को नित्यकर्मों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए. संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए,. नहा-धोकर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर मां की प्रतिमा और तस्वीर को स्थापित करके पूजा करनी चाहिए.

दीपक बनाकर उसमें सोलह बत्तियां जलानी चाहिए. इसके बाद सोलह लड्डू, सोलह फल, सोलह पान, सोलह लौंग और इलायची सहित सामग्री और मिठाई माता के सामने रखनी चाहिए. माता के मंत्र का जाप करना चाहिए " कुंकुमागुरुलिप्तंगा सर्वाभरणभूषितम्. नीलकंठप्रिया गौरी वन्देहं मंगलह्वयम्" इस प्रकार विधि विधान से पूजा द्वारा भक्त को माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है.