ललित मोदी ने भारत की नागरिकता छोड़ी, वनुआतु से नया पासपोर्ट हासिल किया
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भारतीय कानून से बचने के लिए IPL के पूर्व चीफ और जाने-माने बिजनेसमैन ललित मोदी ने एक नया दांव खेला है. उन्होंने भारत की नागरिकता छोड़कर प्रशांत महासागर स्थित एक छोटे से देश वनुआतु की नागरिकता हासिल कर ली है. अपने अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों से ललित मोदी के नए पासपोर्ट की एक कॉपी हाथ लगी है. , ललित मोदी ने करोड़ों रूपये खर्च करके वनुआतु की नागरिकता ली है. भारत की नागरिकता छोड़ विदेशी पासपोर्ट हासिल करने से ललित मोदी को अब प्रत्यर्पित कर वापस लाने की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल बन गई है.
ललित मोदी ने वनुआतु को क्यों चुना?
ललित मोदी ने वनुआतु की नागरिकता इसलिए हासिल की क्योंकि यहां कोई टैक्स नहीं लगता. वनुआतु की सरकार गोल्डन वीजा प्रोग्राम चलाती है. गोल्डन वीजा प्रोग्राम के तहत रुपये देकर आसानी से नागरिकता हासिल कर ली जाती है. वनुआतु की नागरिकता के लिए करोड़ों रुपये देने पड़ते हैं. वनुआतु का भारत या किसी भी देश के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं है. वनुआतु से ललित मोदी का भारत में प्रत्यर्पण बहुत मुश्किल है. वनुआतु फर्जीवाड़े और घोटालों में शामिल लोगों के लिए सुरक्षित ठिकाना है.
मेहुल चौकसी की चाल चल रहे ललित मोदी
ललित मोदी का मामला भारत के हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी जैसा ही है. चोकसी ने 2017 में एंटीगुआ और बारबुडा की नागरिकता ले ली थी. जब भारत ने उसके प्रत्यर्पण की कोशिश की, तो उसने नागरिकता और कानूनी अड़चनों का सहारा लेकर भारत वापसी से बचने की हरसंभव कोशिश की थी अबतक मेहुल चोकसी को नहीं लाया जा सका है. अब ललित मोदी ने भी वही रास्ता अपनाया है. वनुआतु की नागरिकता लेने के बाद, उनका भारतीय पासपोर्ट स्वतः ही रद्द हो गया और भारत सरकार के पास अब उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का दायरा सीमित हो गया है.
क्या अब भारत ला सकेगा ललित मोदी को?
भारत सरकार ललित मोदी को वापस लाने के लिए राजनयिक और कानूनी प्रयास कर सकती है, लेकिन वनुआतु के साथ प्रत्यर्पण संधि न होने के कारण यह बेहद मुश्किल हो जाएगा.
अब आगे क्या?
- .भारत इंटरपोल रेड नोटिस जारी कर सकता है.
- .वनुआतु पर राजनयिक दबाव डालने की कोशिश की जा सकती है.
- .मनी लॉन्ड्रिंग के अन्य वैश्विक कानूनों के तहत कार्रवाई की जा सकती है.
फिलहाल ऐसा लगता है कि ललित मोदी ने भारत के कानून से बचने के लिए जो चाल चली है, वह कारगर साबित हो सकती है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत सरकार उनके प्रत्यर्पण के लिए किस तरह की रणनीति अपनाती है.