भोपाल ।   17 नवंबर को मध्य प्रदेश की 16 वीं विधानसभा के लिए मतदान होगा, जो मध्य प्रदेश का राजनीतिक भविष्य तो तय करेगा ही, साथ में इससे लोकसभा चुनाव 2024 की दिशा भी तय होगी। मध्य प्रदेश में भाजपा एमपी के मन में मोदी के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है तो कांग्रेस अपनी 11 गारंटियों के साथ जनादेश मांग रही है।

मात्र 15 महीने चल पाई कमल नाथ सरकार

गौरतलब है कि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को बहुमत नहीं मिला था और कांग्रेस ने निर्दलीय व अन्य दलों के समर्थन के साथ कमल नाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। यह सरकार मात्र 15 महीने चल पाई। तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों द्वारा दल बदलने से कमल नाथ सरकार गिर गई थी। वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी।

साढ़े तीन साल बाद अब दोनों दल फिर आमने-सामने

लगभग साढ़े तीन साल बाद अब दोनों दल फिर आमने-सामने हैं। भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है, वहीं कांग्रेस कमल नाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है। मध्य प्रदेश हमेशा से ही भाजपा का गढ़ रहा है। इसी कारण भाजपा ने चुनाव आचार संहिता से पहले ही तीन सूची में 79 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। चुनाव की घोषणा के बाद 51 और प्रत्याशियों की सूची घोषित की गई है जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी है। उन्हें उनकी परंपरागत सीट बुदनी से ही प्रत्याशी बनाया गया है।

मप्र की तस्वीर बराबरी की

मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 के बाद लगातार यह दूसरा विधानसभा चुनाव है, जब भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला दिख रहा है। सत्ताधारी दल भाजपा किसी भी कीमत से मप्र को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती है। यही वजह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव की बागडोर अपने हाथ में रखी है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव ने सह प्रभारी के रूप में मप्र में डेरा डाला है। केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को मप्र चुनाव प्रबंधन की कमान सौंपी गई है, साथ ही चुनाव की गंभीरता को देखते हुए उनके साथ दो अन्य केंद्रीय मंत्रियों को भी विधानसभा प्रत्याशी बनाया गया है।

लाड़ली बहना और नकद लाभ वाली योजनाओं के भरोसे भाजपा

मप्र में मिशन 2023 में भाजपा का सारा दारोमदार लाड़ली बहना और नकद आर्थिक लाभ देने वाली योजनाओं पर है तो कांग्रेस अपनी गारंटियों और घोषणाओं की बदौलत जनता का भरोसा जीतने का प्रयास कर रही है। चुनाव के 39 दिन पहले दोनों दल लोकप्रियता और आत्मविश्वास के नजरिए से भी कमजोर नहीं हैं। किसान, युवा, कर्मचारी, पुलिस-पेंशनर, संविदाकर्मी, एससी-एसटी और गरीब महिलाओं के तीन करोड़ से ज्यादा बड़े वर्ग को साधकर भाजपा आम मतदाताओं को साधने में लगी है तो कांग्रेस पुरानी पेंशन योजना, किसान कर्जमाफी, नारी सम्मान योजना के तहत महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये महीना, पांच सौ रुपये में रसोई गैस सिलेंडर, 100 यूनिट बिजली माफ-200 यूनिट हाफ सहित अन्य गारंटियों के साथ कांग्रेस चुनाव मैदान में उतर रही है।

असल चुनाव स्‍थानीय मुद्दोंं पर ही

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भले ही यहां चुनाव की कमान संभालेगा लेकिन असली चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही होगा। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगा, जबकि आप, सपा, बसपा के अलावा कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी वजूद की तलाश में जोर-आजमाइश करेंगी ही। हालांकि, यह वोट काटने तक ही सीमित होंगी, तीसरे दलों के पास सीटों की संख्या कम ही रहेगी।

अजा और अजजा की होगी अ‍हम भूमिका

विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) वर्ग सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करेंगे। मप्र में आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीट सुरक्षित हैं। इनमें से फिलहाल भाजपा के पास मात्र 16 सीट हैं और कांग्रेस ने इतनी ही सीट 2018 में भाजपा से छीन ली थी। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इन वर्गों को साधने में जुटे हैं। जनजातीय मतदाताओं को साधने के नजरिए से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मप्र ने इस वर्ष दस दौरे कर चुके हैं।