शरीर के सभी अंग एक दूसरे से जुड़े होते हैं और मिलकर काम करते हैं, यानी कि अगर किसी एक अंग में कोई दिक्कत होती है तो इसका असर पूरे शरीर पर हो सकता है। यही कारण है कि डायबिटीज की समस्या में हृदय रोग, किडनी और आंखों में भी दिक्कतें होने लगती हैं। इसी तरह से पेट की भी कई दिक्कतें शरीर के अन्य अंगों के लिए भी समस्याएं बढ़ाने वाली मानी जाती हैं।

इसी को लेकर किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में अल्सरेटिव कोलाइटिस की बीमारी होती है, उनमें समय के साथ हृदय रोगों के विकसित होने का भी खतरा बढ़ सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि अल्सरेटिव कोलाइटिस की बीमारी वाले लोगों में कई जोखिम हो सकते हैं, जो हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाने वाली मानी जाती हैं। आइए जानते हैं कि पेट की ये समस्या हमारे हृदय को किस प्रकार से प्रभावित करती है?

अल्सरेटिव कोलाइटिस और हृदय रोगों का खतरा

अल्सरेटिव कोलाइटिस, इंफ्लामेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) का ही एक प्रकार है। यह स्थिति बड़ी आंत और मलाशय की सबसे भीतरी परत में होती है, जिससे आपके पाचन तंत्र के अंदर घाव हो जाते हैं। अल्सरेटिव कोलाइटिस वाले रोगियों को न केवल आईबीडी से संबंधित पाचन समस्याओं की समस्या होती है साथ ही अध्ययनों से पचा चलता है कि उन्हें हृदय रोग का भी अधिक खतरा हो सकता है।

नीदरलैंड के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पाया  कि आईबीडी की समस्या को सिर्फ पेट की दिक्कत मानने की गलती नहीं करनी चाहिए, ये हृदय संबंधी समस्याओं के खतरे को भी बढ़ा देती है।

इंफ्लामेशन के कारण ब्लड क्लॉटिंग का खतरा

मल्टी-यूनिवर्सिटी अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अल्सरेटिव कोलाइटिस रोगियों में हार्ट फेलियर के जोखिमों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। अध्ययन के सह-लेखक चयाक्रिट क्रिटानावोंग कहते हैं, लिपिड पैराडॉक्स इसका एक संभावित कारण हो सकता है, हालांकि इसकी पुष्टि के लिए हमें इस पर अधिक डेटा की आवश्यकता है, विशेष रूप से संभावित नैदानिक परीक्षणों की।

शोधकर्ताओं ने पाया कि आईबीडी रोगियों में रक्त के थक्कों के बनने का खतरा तीन गुना अधिक देखा गया है जिससे दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है। माना जाता है आईबीडी के दौरान शरीर में इंफ्लामेशन बढ़ने के कारण इस तरह की दिक्कतें होती हैं। ब्लड क्लॉटिंग को हृदय की सेहत को बढ़ाने वाले प्रमुख खतरों में से एक माना जाता रहा है।

क्या कहते हैं शोधकर्ता

अध्ययन के निष्कर्ष में इरास्मस यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी विभाग के शोधकर्ता, जैसमिजन स्लुटजेस कहते हैं, आईबीडी रोगियों में कार्डियोवैस्कुलर बीमारी का खतरा बढ़ने की आशंका सबसे अधिक उन मरीजों में देखी जा रही है जिन्हें क्रोनिक इंफ्लामेशन की समस्या है। ये एथेरोस्क्लेरोसिस के विकास को भी बढ़ा देती है। 

अल्सरेटिव कोलाइटिस वाले रोगियों के बीमारी के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। लक्षणों को कम करने के लिए अपने आहार पर ध्यान दें, सुनिश्चित करें कि आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल में रहे। एहतियातन, ऐसे रोगियों में समय-समय पर कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोगों की जांच भी करते रहना चाहिए।