मंगल पर तूफान सौर ऊर्जा की वजह से आते हैं
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने पता लगा है कि मंगल ग्रह पर तूफान सौर ऊर्जा के अवशोषण और उत्सर्जन की वजह से आते हैं। इन तूफानों का समझना वैज्ञानिकों के लिए बहुत जरूरी हो गया था जिससे वे आगे के मंगल अभियानों को सुरक्षित और सुचारू रूप से चला सकें। होस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में पता लगाया है कि ये धूल भरे विशाल तूफान के पीछे की वजह लाल ग्रह द्वारा अवशोषित और उत्सर्जित सौर ऊर्जा के मौसमी असंतुलन है।
वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर मौसमी बदलावों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। जिसमें तापमान में बदलाव से धूल के तूफान बनने लगते हैं और बढ़ने लगते हैं। होस्टन के शोधकर्ताओं के अध्ययन के नतीजे मंगल ग्रह की जलवायु और वायुमंडल के बारे में नई जानकारी दे सकते हैं। यह अध्ययन होस्टन यूनिवर्सिटी के अर्थ एंड एटमॉस्फियरिक साइंसेस विभाग की पीएचडी छात्रा एलन क्रीसी की अगुआई में हुआ था जिसमें नासा के अलावा अन्य यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता भी शामिल थे।किसी ग्रह की जलवायु और उसके मौसमी चक्रों की विशेषताओं को मापने के लिए रेडिएंट एनर्जी बजट एक मूल पैमाना होता है। यह सौर ऊर्जा का वह हिस्सा होती है जो ग्रह अवशोषित करता है और ऊष्मा के तौर पर उत्सर्जित करता है। इनके अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने मंगल के मार्स ग्लोबल सर्वे, क्यूरोसिटी रोवर और इन्साइट लैंडर अभियानों के आंकड़ों का उपयोग किया। इन आंकड़ों की मदद से वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की जलवायु का प्रतिमान बनाया और उसके द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा का आकंलन मौसम के फलन के तौर पर किया जिसमें धूल के तूफानों के मौसम भी शामिल थे। क्रीसी ने बताया कि मंगल पर ऊर्जा ज्यादा अवशोषित होती है और उत्सर्जित कम होती है जिससे वहां धूल के तूफानों की प्रणाली काम करने लगती है।
अध्ययन के नतीजों ने बताया कि मंगल पर मजबूत मौसमी और दैनिक विविधता भरा ऊर्जा विकिरण होता है। उन्होंने पाया कि मंगल पर मौसमों के बीच ऊर्जा असंतुलन करीब 15.3 प्रतिशत रहता है जबकि पृथ्वी पर यह केवल 0.4 प्रतिशत होता है। साल 2001 में आते धूल के तूफान के दौरान दिन में विकिरण 22 प्रतिशत घटा तो रात में वह 29 प्रतिशत बढ़ गया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस ऊर्जा असंतुलन से पता चलता है कि हमें अपने वर्तमान संख्यात्मक प्रतिमानों का फिर से अवलोकन करना होगा क्योंकि ये मानते हैं कि मंगल ग्रह के मौसम का ऊर्जा विकिरण संतुलित है। जबकि यह अध्ययन ऊर्जा असंतुलन और धूल के तूफानों के बीच के संबंध को रेखांकित करता है। इससे हमें इन तूफानों के बारे में नई जानकारी मिल सकती है। बेशक यह नई जानकारी मंगल की जलवायु और वायुमंडलीय संचारणों की समझ को बेहतर करेंगे। इससे आने वाले समय में नासा और चीन के भावी मंगल अभियानों को यहां के मौसम के लिए तैयार रहने में मदद मिल सकेगी।
मालूम हो कि मंगल ग्रह के रहस्यों में से एक मौसमी धूल भरे तूफान भी हैं। ये तूफान इतने बड़े होते हैं कि पूरे ग्रह को अपनी चपेट में ले लेते हैं। इस समय मंगल पर इन्हीं तूफानों का मौसम है। इनके चलते चीन के भेजे जूरोंग रोवर भी हाइबरनेशन होकर निष्क्रिय हो गया है। साल 2018 में यह तूफान इतना तीव्र था कि इसने अधिकांश लाल ग्रह को ढक लिया था और इसकी वजह से नासा का अपोर्च्यूनिटी रोवर तक में खराबी आ गई थी।