नगर निगम ने जितनी राशि कचरा डंप करने में फूंक दी उससे कम लागत में अत्याधुनिक साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनकर तैयार हो जाता है। धनबाद से कचरे की समस्या भी खत्म हो जाती और राजस्व मिलता। यह दोनों नहीं हो सका।

कचरा डंप करने को लेकर छिड़ा विवाद

इसका नतीजा यह निकल रहा है कि कचरा डंप करने को लेकर छिड़े विवाद में पिछले 20 दिनों से शहर में कचरा ही कचरा नजर आ रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ कचरा डंप करने पर निगम ने 86.40 करोड़ खर्च कर दिए। राज्य के कई अन्य निकायों में भी कचरा एकत्रित कर रही है। इसके एवज में नगर निगम निर्धारित राशि का भुगतान करता है। 20 दिन पहले तक झरिया के बनियाहीर में शहर का कचरा फेंका जा रहा है। इस कार्य में छोटी-बड़ी 180 गाड़ियां लगी हैं। पूरे वर्ष एक लाख 46 हजार टन कचरा एकत्रित हो रहा है। चार वर्ष में छह लाख टन कचरा बनियाहीर में फेंका गया। इस कचरा कलेक्शन एवं डंप करने के एवज में निगम ने प्रत्येक माह एक करोड़ 80 लाख रुपये का भुगतान किया।

कचरा फेंकने में बस खर्च हुए करोड़ों रुपये

इस तरह चार वर्षों में सिर्फ कचरा फेंकने पर निगम ने 86 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च कर दिए। इसके बाद भी शहर में कचरे का ढेर है। इतने वर्षों में प्लांट भी नहीं बन सका। कचरे का सही तरीके से निस्तारण भी नहीं हो पा रहा है। जितना पैसा निगम ने कचरा फेंकने पर खर्च कर दिया, इससे कम राशि में साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बन जाता।

2021 में बनी थी राज्य के पहले अत्याधुनिक प्लांट की योजना

2021 में अत्याधुनिक साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने की योजना थी। निगम ने दावा किया था कि यह देश का चौथा और राज्य का पहला प्लांट होगा। इससे पहले हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली में इस तरह का प्लांट बन चुका है। कचरा रिसाइकल होगा, कंपोस्ट बनेगा, कचरे से ईंट बनेगी और वेस्ट एनर्जी प्लांट लगाया जाएगा। यह राज्य का पहला ऐसा प्लांट होगा, जहां कचरे से बिजली पैदा होगी। यह सब सिर्फ कागजों में सीमित है। 70 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना थी। बलियापुर और आमझर में जमीन मिली भी, लेकिन विरोध की वजह से काम नहीं शुरू हो सका। प्लांट से होने वाली आय में नगर निगम को प्राॅफिट के रूप में पांच फीसद देने का प्राविधान किया गया था। प्लांट बनने से ढाई हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार का अवसर उपलब्ध होता।