हेलसिंकी । एक अध्ययन बताता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लाखों वर्षों से दबे हुए रोगाणु पर्माफ्रॉस्ट से बाहर आने लगे हैं। इसमें से 1 प्रतिशत आज के इकोसिस्टम के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं। शोधकर्ता जियोवन्नी स्ट्रोना ने कहा, यह इस प्रकार के अतीत से आने वाले आक्रमणकारियों के इकोसिस्टम पर संभावित असर को मात्रात्मक रूप से मॉडलिंग करने का पहला प्रयास है।
पर्माफ्रॉस्ट बर्फ से बंधी मिट्टी, बजरी और रेत का मिश्रण होता है। यह आर्कटिक के क्षेत्रों और अलास्का, ग्रीनलैंड, रूस, चीन और उत्तरी और पूर्वी यूरोप के कुछ हिस्सों में पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे पाया जाता है। जब पर्माफ्रॉस्ट बनता है, तब बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीव इसके अंदर फंस सकते हैं। ये हजारों और लाखों साल तक बिना कोई हरकत किए जीवित रह सकते हैं। गर्मी से मेटाबॉलिक प्रक्रिया शुरू हो सकती है जो इन निष्क्रिय रोगाणुओं को फिर से सक्रिय और बाहर आने में मदद करती है।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते इसमें से कुछ रोगाणु, जिनमें बीमारी पैदा करने की क्षमता वाले भी शामिल हैं, पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बाहर आ रहे हैं। 2016 में, साइबेरिया में एंथ्रेक्स के प्रकोप से हजारों बारहसिंगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग प्रभावित हुए थे। वैज्ञानिकों ने इसके लिए पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने को जिम्मेदार ठहराया था। ये रोगाणु एक संभावित खतरा पैदा करते हैं क्योंकि आज का इंसान और अन्य जीवित जीव बेहद लंबे समय से इनके संपर्क में नहीं आए हैं। 
स्ट्रोना ने कहा, अगर रोगाणु लंबे समय से बैक्टीरिया, इंसान या जानवरों के साथ रह रहे हों, तब आप रोगाणुओं और इनके बीच कुछ सह-विकास की उम्मीद कर सकते हैं, जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए रोगाणुओं का खतरा कम कर देता है। लेकिन अगर आपके सामने अतीत से आया रोगाणु हो तो आपका सामना स्पष्ट रूप से नए तरह के जोखिमों से होता है।