पटना। प्रसव वेदना से पहले तक रिंकी देवी की चिकित्सा ठीक-ठाक हुई, लेकिन उसके बाद चिकित्सकीय कोताही उनके परिवार के लिए दुर्भाग्य का कारण बन गई। ऑपरेशन से रिंकी ने अपने परिवार को एक बिटिया तो दिया, लेकिन स्वयं अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गईं। इसका एकमात्र कारण चिकित्सा में लापरवाही रही।

12 साल बाद परिवार को मिला न्‍याय

मामला उपभोक्ता आयोग तक पहुंचा। आयोग से चिकित्सक और अस्पताल को दोषी पाते हुए 28.60 लाख हर्जाना देने का आदेश दिया है। इस दुखद कहानी की शुरुआत कटिहार से होती है और अंत पटना में। पीड़ित परिवार को लगभग 12 वर्षों बाद न्याय मिला है।

रिंकी कटिहार जिला में बारसोई प्रखंड के कुरम गांव की रहने वाली थीं। उनके पति शरद चौधरी पटना जिला उपभोक्ता आयोग में 04 जुलाई, 2012 को न्याय के लिए पहुंचे थे। साक्ष्यों के अध्ययन और संबंधित पक्षों की दलीलें जानने-समझने के बाद आयोग के अध्यक्ष प्रेम रंजन मिश्रा और सदस्य रजनीश कुमार ने अपना निर्णय दिया है।

प्रसव पीड़ा के बाद अस्‍पताल पहुंचाई गई थी रिंकी

कटिहार में नर्सिंग होम चलाने वाले डा. पीसी झा और पटना में मगध हाॅस्पिटल के निदेशक को हर्जाने का भुगतान करना है। 20 लाख रुपये चिकित्सकीय कोताही के एवज में दिए जाएंगे, जबकि आठ लाख रुपये शिकायतकर्ता को हुए आर्थिक नुकसान के एवज में।

50 हजार रुपये मानसिक पीड़ा झेलने का हर्जाना है और 10 हजार रुपये न्यायिक खर्च के। कटिहार में डा. बिभा झा की देखरेख में रिंकी की चिकित्सा ठीकठाक हुई। उसके बाद मामला बिगड़ा। प्रसव-पीड़ा होने पर रिंकी नर्सिंग होम पहुंचीं। वहां डा. बिभा के पति डा. पीसी झा ने 02 दिसंबर, 2010 को उनका ऑपरेशन किया।

2010 को रिंकी ने तोड़ा दम

पीसी झा सर्जन तो हैं, लेकिन गायनोकोलाजिस्ट नहीं। आरोप है कि उन्होंने बिना पैथोलाजिकल जांच के अनधिकृत रूप से उनका ऑपरेशन किया और वह संक्रमित हो गईं। उन्हें रेफर भी सरकारी के बजाय निजी अस्पताल (पटना में राजेंद्रनगर स्थित मगध हास्पिटल) में किया गया।

मगध हास्पिटल में 15 दिन भर्ती रहने के बाद 20 दिसंबर, 2010 को मरणासन्न स्थिति में रिंकी को पीएमसीएच रेफर किया गया। सेप्टीसीमिया के कारण उन्होंने वहां 31 दिसंबर, 2010 को दम तोड़ दिया। मेडिकल बोर्ड ने पाया कि उचित चिकित्सा नहीं होने से रिंकी संक्रमित हुईं, जो कि मृत्यु का कारण बना। आयोग ने डा. बिभा झा को इस प्रकरण में निर्दोष पाया है।