स्कॉटलैंड के एक राजा को शत्रुओं ने पराजित कर दिया। उसे धन-जन की बड़ी हानि हुई और संगी-साथी भी छूट गए। अब बस उसका जीवन बचा था, पर शत्रु उसकी टोह में थे। प्राण बचाने के लिए वह भागा-भागा फिर रहा था। स्थिति यह थी कि राजा अब मरा कि तब मरा। राजा एक खोह में छिपा अपनी मौत की प्रतीक्षा करते हुए सोच रहा था- शत्रु की तलवार पल भर में मेरा काम तमाम कर देगी।  
तभी राजा ने देखा- एक मकड़ी खोह के दरवाजे पर जाला बनाने में व्यस्त थी। वह कई बार कोशिश करती, नाकाम रहती, लेकिन फिर से उठकर जाला बनाने लगती। राजा ने सोचा- यह व्यर्थ प्रयत्न कर रही है। बिना आधार के जाला भला कैसे बना पाएगी। किंतु आश्चर्य, मकड़ी का एक झीना-सा सूत्र खोह के मुंह पर अटक ही गया। बस फिर एक के बाद एक सूत्र अटकते चले गए और देखते-देखते जाला तेजी से बुना जाने लगा। थोड़ी देर में पूरी खोह के मुंह पर जाला तैयार था।  
तभी शत्रु के सिपाही वहां आ पहुंचे। लेकिन खोह के मुंह पर मकड़ी का जाला बना देख वापस लौट गए। करीब आई हुई मौत तो वापस चली गई पर राजा को एक गहरे विचार में छोड़ गई। उसने सोचा- मकड़ी बार-बार गिरकर भी निराश और परास्त नहीं हुई तो मैं इंसान होकर भी क्यों डर रहा हूं? मैं भी अवश्य अपने शत्रुओं को परास्त करूंगा। इस मकड़ी ने मेरा संकल्प मजबूत कर दिया है। यह सोचते ही वह खोह से बाहर निकल गया।