जयपुर । भारत में पहली बार 1952 में आम चुनाव हो रहे थे। स्वतंत्रता के बाद पहले चुनाव थे। 1947 में आजादी के बाद देश में बड़े पैमाने पर खून खराबा और दंगे हुए थे। इसमें हिंदू महासभा की भूमिका विभाजन के बाद हुए दंगों में काफी महत्वपूर्ण थी। जिसके कारण जनता के बीच में हिंदू महासभा के खिलाफ एक वातावरण बना हुआ था। वहीं आम जनता कांग्रेस से प्रभावित थी।
 ऐसी स्थिति में हिंदू महासभा के स्थान पर एक नया हिंदू राजनीतिक संगठन बनाया गया। कांग्रेस का विरोध उस समय जमींदार और राजघराने कर रहे थे। राजघराने और जमींदार कांग्रेस की नीतियों से सहमत नहीं थे। समाजवाद को लेकर राजघरानो का बड़ा विरोध था। राजघरानो के पास कोई विकल्प नहीं था। ऐसी स्थिति मे राजघरानो और जमीदारों ने आर्थिक सहयोग देकर भारतीय जनसंघ को खड़ा करने में बड़ा योगदान दिया। वहीं कांग्रेस की टिकट पर वह चुनाव भी लड़े और अपनी हैसियत को भी मजबूत करने का प्रयास किया।
राजस्थान में जनसंघ की जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी को दी गई थी। उन्होंने जनसंघ के लिए योग्ग उम्मीदवारों की तलाश की। इसमें उन्हें राजघरानो का बड़ा सहयोग मिला। 1952 के आम चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा से जुड़े कार्यकर्ताओ, जमीदारों और राजघराने की सहायता से जनसंघ के उम्मीदवार चुनाव में खड़े किए गए। राजघराने और जमीदारों ने कांग्रेस और जनसंघ के दोनों घोड़े पर दांव लगाकर अपनी राजनीतिक हैसियत को मजबूत बनाने का काम किया। इसी प्रयास में जनसंघ को लगातार आर्थिक सहायता, राजपरिवारों और जमीदारों  से मिलती रही। जिसके कारण हिंदी भाषी राज्यों में जनसंघ का धीरे-धीरे प्रभाव बढ़ता चला गया। इंदिरा गांधी के एक निर्णय ने आग में घी डालने का काम किया। जब उन्होंने राजाओं के प्रीविपर्स और विशेष अधिकारों को खत्म करने का निर्णय लिया। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। जिसके कारण राजाओं ने कांग्रेस से बगावत कर दी। उत्तर भारत के राज्यों में इसका फायदा जनसंघ को मिला। राजघराने बगावत करके जनसंघ में शामिल हो गए। उसके बाद से जनसंघ की ताकत बढ़ाना शुरू हुई। जमीदारों और राजघराने के विद्रोह के बाद कई राज्यों में संविद सरकारों का गठन भी हुआ। कांग्रेस कमजोर हुई।