जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के साथ हुए भीषण खूनी संघर्ष को चार साल पूरे होने को हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) विवाद को लेकर भारत-चीन के बीच अभी तक 21 दौर की कोर कमांडर स्तर की बातचीत हो चुकी हैं, लेकिन दो अहम जगहों को लेकर अभी भी गतिरोध बरकार है। इनमें देपसांग प्लेंस या देपसांग मैदानी क्षेत्र भी शामिल है, जिसके उत्तर में भारत का सबसे मुश्किल एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) स्थित है। वहीं हाल में भारतीय सेना ने गलवां हिंसा के बाद पहली बार देपसांग की फोटो साझा की हैं, जहां भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने (मिरर डिप्लॉयमेंट) हैं। वहीं रक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसा करके भारत ने चीन को करारा जवाब दिया है। 

लद्दाख की सुपर हाई एल्टीट्यूड लोकेशंस

हाल ही में 26 अप्रैल, 2024 को लेह स्थित 14 कोर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर चार तस्वीरों को शेयर किया। इन सभी तस्वीरों का कैप्शन था, "फायर एंड फ्यूरी कोर के बहादुर लद्दाख में अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर मजबूती और पूरी ताकत के साथ खड़े हैं।" हालांकि कैप्शन में सिर्फ इतना लिखा गया था कि लद्दाख की सुपर हाई एल्टीट्यूड लोकेशंस। उन जगहों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। दरअसल 14 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल रशीम बाली सैनिकों से मिलने लद्दाख की उन दुर्गम जगहों पर पहुंचे थे, जिसकी ऊंचाई तकरीबन 16000 से 17 हजार फीट तक हैं और चीन से यहां सीधा टकराव है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक यह इलाका है देपसांग प्लेन है, जिसके लिए भारत साल 2020 से पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद हल करने के पहले कदम के रूप में देपसांग में सैनिकों की वापसी के लिए दबाव डाल रहा है।

यहां आमने-सामने डटे हैं चीनी और भारतीय सैनिक

14 कोर, जिसे फायर एंड फ्यूरी कोर भी कहा जाता है, इसी इलाके में सियाचीन, पैंगोंग लेक, देमचोक, कैलाश मानसरोवर रेंज, गलवान घाटी जैसे अहम रणनीतिक इलाके आते हैं, जिनकी सीमाएं तिब्बत (चीन) से मिलती हैं। रक्षा सूत्रों ने बताया कि फायर एंड फ्यूरी कोर ने जो फोटोग्राफ शेयर किए हैं, उनमें से एक राकी नाला घाटी में 'बॉटलनेक' जगह की हैं, जो देपसांग के दक्षिण में है। 'बॉटलनेक' या 'वाई-जंक्शन', यह वही इलाका है, जहां चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारतीय सैनिकों को उनके पेट्रोलिंग पॉइंट्स 10, 11, 11ए, 12 और 13 पर जाने से रोक हुआ है। यह इलाका भारत में लगभग 18 किलोमीटर अंदर है और चीन इसके 972 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा ठोकता है। यह इलाका तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ने वाले चीन के महत्वपूर्ण पश्चिमी राजमार्ग जी-219 के काफी करीब है। वहीं इस इलाके में भारत और चीनी सैनिक आमने सामने डटे हुए हैं। वहीं भारत ने 2020 की गलवान हिंसा के बाद लद्दाख के ऊंचाई वाले इलाकों में एलएसी के नजदीक लगभग 90 टैंक, 300 से अधिक इनफैंट्री कॉन्बैट व्हीकल्स के साथ 68,000 से अधिक अतिरिक्त जवानों को तैनात किया था।

चीन ने रखा था बफर जोन बनाने का प्रस्ताव

इस साल 19 फरवरी को भारत-चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए 21वें राउंड की कमांडर स्तर की मीटिंग हुई थी, जिसमें चीन ने देपसांग और डेमचोक के ट्रैक जंक्शन से सेना हटाने की भारत की मांग को ठुकरा दिया था। इससे पहले 20वें राउंड की कोर कमांडर स्तर की बैठक अक्तूबर में हुई थी। इस दौरान भारत ने चीन पर देपसांग और डेमचोक से सेना हटाने का दबाव डाला था। तब भी चीन ने सेना पीछे करने से इनकार कर दिया था। वहीं दोनों देशों ने सीमा इलाकों में जमीनी स्तर पर शांति बनाए रखने पर सहमति जताई थी। रक्षा सूत्रों के मुताबिक 18वें राउंड की बैठक के बाद में चीन ने भारतीय सीमा के अंदर 15-20 किमी की चौड़ाई वाला एक बफर जोन बनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे भारत ने सिरे से ठुकरा दिया था। जिस पर चीनियों ने देपसांग से हटने से इनकार कर दिया था। 

यहां है भारत का सबसे ऊंचा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड

डिफेंस सूत्रों ने बताया कि गलवान में चीन से हुए खूनी संघर्ष के बाद यह पहली बार है, जब भारतीय सेना ने इस इलाके की फोटोग्राफ जारी की हैं। सेना की भाषा में इस इलाके को सब सेक्टर नॉर्थ (एसएसएन) के नाम से भी जाना जाता है। इसे दरबुक-श्योक-डीबीओ रोड भी कहते हैं, जिसकी लंबाई 255 किमी है। देपसांग से पहले दरबुक के पास श्योक गांव के उत्तर में आम नागरिकों के जाने की मनाही है। देपसांग के नजदीक ही दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) है, जहां मौसम बहुत मुश्किलों भरा होता है। यहां इतनी तेज हवा चलती है और तापमान इतना ठंडा होता है कि कुछ मिनट भी खुले में खड़े होना संभव नहीं होता है। दौलत बेग ओल्डी में ही भारतीय वायु सेना का सबसे मुश्किल एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) है, जो 16,300 फीट ऊंचाई पर स्थित है और दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी है। एयरफोर्स यहां पर सिर्फ हाई-विजिबिलिटी लैंडिंग करती रही है। 

इसलिए है देपसांग पर चीन की नजर

रक्षा मामलों के जानकार रिटायर्ड कर्नल अनुपम ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि इस इलाके की फोटो जारी होने से चीन को झटका लगना लाजमी है। यह इलाका चीनी दावे से 1.5 किमी दूर है, चीन देपसांग के बुर्त्सा इलाके तक अपना दावा करता है। अप्रैल 2013 में, पीएलए ने देपसांग बुल्गे के मुहाने पर, जहां राकी नाला और देपसांग नाला मिलते हैं, वहां एक अस्थायी शिविर बनाया था और इसके चीनी इलाका होने का दावा किया था। हालांकि, तीन हफ्ते के गतिरोध के बाद, वह भारत के साथ हुए सीमा रक्षा सहयोग समझौते (बीडीसीए) के चलते पीछे हट गया। 2015 में चीन ने बुर्त्सा के पास एक वॉचटावर बनाने की कोशिश भी की थी। इसके बाद 2017 में चीनी सैनिक ने भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम को राकी नाला पार करने से रोक दिया था। वहीं 2020 में गलवान संघर्ष के बाद चीन ने यहां अपनी एक स्थाई तियानवेंडियन पोस्ट बना ली। वह बताते हैं कि चीन के लिए देपसांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से काराकोरम पास बेहद नजदीक है और यह चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन इलाके से होकर गुजर रहे पश्चिमी राजमार्ग जी-219 के काफी करीब है। 

वहीं भारत के लिए यह इलाका इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पश्चिम में सियाचिन ग्लेशियर है, जो सासेर ला और पाकिस्तान सीमा पर साल्टोरो रिज के बीच में स्थित है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक 2013 के बाद से चीन इस इलाके में 18 किमी अंदर तक घुसपैठ कर चुका है, जिसके बाद भारत ने यहां एक ब्रिगेड तैनात कर दी है। हालांकि दौलत बेग ओल्डी तक 255 किमी लंबी दरबुक-श्योक-डीबीओ रोड से ही पहुंचा जा सकता है, वहीं यहां तक पहुंचने के लिए एक अल्टरनेटिव रूट पर भी काम चल रहा है, जो सासेर ला से डीबीओ तक पहुंचेगा और चीन की पहुंच से दूर भारतीय सीमा के भीतर होगा।