बूंदी अडानी विल्मर फैक्ट्री के खिलाफ बूंदी के सदर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया साथ ही अडानी विल्मर को दोषी मानते हुए चालान पेश किया जा चुका था।

बूंदी की अडानी विल्मर फैक्ट्री में श्रमिक बाबूलाल रैगर फिटर के पद पर कार्यरत था। मशीनों में खराबी आने के बाद कई बार प्रबंधन को चेताया भी गया, लेकिन अडानी विल्मर के प्रबंधन की उदासीनता की कीमत बाबूलाल को अपने दोनों पैर देकर चुकानी पड़ी। 

साल 2004 में फैक्ट्री के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ और अडानी विल्मर फैक्ट्री प्रबंधन को दोषी मानते हुए कोर्ट में चालान भी पेश किया गया, लेकिन अडानी विल्मर प्रबंधन ने धूर्तता दिखाते हुए बाबूलाल को विश्वास में लेकर कोर्ट में राजीनामा कर लिया। इलाज के लिए कुछ पैसे चेक के माध्यम से दिए गए। समझौते के अनुसार बेटे को नौकरी तो दी लेकिन ठेका के माध्यम से। बाबूलाल ने असंतुष्टता जाहिर की तो बेटे को भी नौकरी से निकाल दिया। रही बात पेंशन की तो दुर्घटना के 18 वर्ष बाद भी बेरोजगार बाबूलाल अपने परिवार के साथ आस लगाए बैठा है की कभी तो न्याय मिलेगा।

दुर्घटना में अपने दोनों पैर पूरी तरह गंवाकर विकलांग बने श्रमिक को घटना के 18 वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिल सका। कभी दोनों पैरों पर चलने वाला श्रमिक बाबूलाल रेगर शुक्रवार को जब ट्राई साइकिल चलाते हुए बूंदी जिला कलेक्ट्रेट पहुंचा तो उसकी आंखों में आंसू थे। बाबूलाल ने शुक्रवार दोपहर को कार्यवाहक जिला कलेक्टर मुकेश चौधरी को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देकर न्याय की गुहार लगाई।

न पेंशन दी और न ही बेटे को नौकरी दी

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के नाम दिए ज्ञापन में बाबूलाल ने कहा कि अडानी विल्मर फैक्ट्री के संचालकों ने दुर्घटना के बाद उसे आजीवन पेंशन और उसके पुत्र को स्थाई नौकरी देने का वादा कर अदालत में राजीनामा करवा लिया। कुछ समय तक बेटे को फैक्ट्री पर ठेके पर काम पर रखा और स्थायी नौकरी की बात की तो वहां से भी निकाल दिया। परिवार के भरण-पोषण के लिए कंपनी की ओर से आजीवन पेंशन देने का वादा किया था, लेकिन 18 वर्ष के बाद भी आज तक पेंशन चालू नहीं की गई है।